तब सांख्य शास्त्र को अवैदिक या वेद विरुद्ध कहना कथमपि समीचीन नहीं जान पड़ता।
2.
जिसे वह वापस समाज के सामने परोस कर रख देता है. उसका समाज के विरुद्ध कहना...
3.
अटक अटक कर...नौसिखिये की भांति..कोई सटीक विचार व तथ्यान्कन नहीं...बस स्कूली बच्चे की भांति रटा-रटाया...धर्म के विरुद्ध कहना ही मकसद है....
4.
जहाँ प्रवेश देने की पहली शर्ट होती है की नेहरूगन्धी राजवंश भगवान से भी ज़्यादा पूज्य है उसके विरुद्ध कहना और लिखना तो दूर सोचना भी गुनाहे-अज़ीम है.
5.
मैंने तो सिर्फ उनसे अपील की है कि लोगो के उकसावे में आकर किसी भी धर्म के विरुद्ध कहना ना सिर्फ अपनी प्रतिभा को ज़ाया (बेकार) करना है बल्कि इस्लाम धर्म भी इसकी इजाज़त नहीं देता है.